अनकही
- Deeksha Saxena

- 2 days ago
- 1 min read
अरसे बाद आज चांद दिखा
तो सोचा कुछ गुफ्तगू कर लू,
कुछ अपनी कह दू
कुछ उसकी सुन लू,
और हुआ कुछ यूं की
चाय में उबाल आया
की कप में परोसी गई,
उसने अपनी कही
और मैं अपनी कह गईं,
मग्न दोनो अपनी कहने में
शब्द पिरोने में
और चाय पीने में,
इक झलक जो नजर टकरार्ई
तो सैलाब सा दिख गया,
और सैलाब के गहराई में दबी
वो इक बात दिख गई,
नज़रे झुकी फिर
चाय की चुस्की और
फिर बातें शुरू हुई
समय की ही थी ये हरकत
की बातें तो फिर बहुत हुई
बस बात न हुई।



Comments